विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को वह याचिका स्वीकार करने से इनकार किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि राजधानी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान नियमों का उल्लंघन करते हुए दूरसंचार सेवाओं को बंद कर दिया था। चीफ जस्टिस डी.एन.पटेल और जस्टिस सी.हरिशंकर की बैंच को केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल संजय जैन का कहना है कि १९ दिसंबर को दूरसंचार सेवाएं महज 4 घंटे के लिए बाधित की गईं थी और अब ऐसा कुछ नहीं है। इसके बाद बैंच ने जनहित याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
गौरतलब है कि १९ दिसंबर को सीएए के विरोध में राजधानी दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। जैन ने कहा कि दूरसंचार सेवाओं पर पाबंदी के लिए जो निर्देश जारी किए थे उनमें किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। याचिका एसएफएलसी डॉट इन नाम की संस्था ने दायर की थी। हाईकोर्ट ने याचिका अस्वीकार करते हुए कहा कि सेवाओं के बाधित रहने से याचिकाकर्ता संस्था या किसी अन्य को यदि कोई नुकसान हुआ है तो वह केस दायर कर क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है। याचिका में कहा कि दिल्ली में दूरसंचार सेवाओं पर पाबंदी का आदेश पुलिस उपायुक्त की ओर से जारी किया, जबकि संबद्ध नियमों के तहत इस तरह का निर्देश जारी करने का अधिकार गृह मंत्रालय के सचिव को होता है। डिजिटल अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए काम करने का दावा करने वाली संस्था एसएफएलसी डॉट इन ने याचिका में कहा कि शहर में दूरसंचार सेवाओं पर रोक लगाने का पुलिस का निर्देश दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात स्थिति या लोक सुरक्षा) नियम,२०१७ का उल्लंघन है। दूरसंचार सेवा के निलंबन का आदेश शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकने के लिए दिया गया था और भारत के संविधान तहत यह प्रतिबंध तर्कसंगत नहीं है। याचिका में दावा किया है कि इंटरनेट सुविधा शिक्षा का अधिकार और निजता के अधिकार का हिस्सा है। ऐसे में इंटरनेट सेवाओं को बंद करना शिक्षा एवं निजता के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन है।