मुंबई। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में शनिवार को प्रकाशित संपादकीय में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) और उसके सहयोगियों पर जमकर हमला बोला। किसान आंदोलन को लेकर विपक्षी दलों के एकजुट नहीं होने पर भी आलोचना की गई। शिवसेना ने संपादकीय में कहा कि अगर किसान आंदोलन के 30 दिनों के बाद भी नतीजा नहीं निकल पाया है, तो सरकार यह सोचती है कि उसे कोई राजनीतिक खतरा नहीं है। लोकतंत्र में विपक्ष अहम किरदार निभाता है, लेकिन दुख की बात है कि कांग्रेस और यूपीए मोदी सरकार पर दबाव बनाने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं।
सामना के संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस के नेतृत्व में एक संप्रग नामक राजनीतिक संगठन है। उस संप्रग की स्थिति एक एनजीओ जैसी होती दिख रही है। संप्रग के सहयोगी दल भी किसानों के असंतोष को गंभीरता से लेते दिखाई नहीं देते। संप्रग में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। सामना ने लिखा राहुल गांधी काम कर रहे हैं, लेकिन उनके नेतृत्व में कुछ कमी है। कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष की जरूरत है। संप्रग को ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ जोड़ने की जरूरत है, लेकिन ऐसा भविष्य में होता दिखाई नहीं देता। केवल शरद पवार ही संप्रग में नजर आते हैं। उनकी स्वतंत्र सोच है। उनके अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी तक लेते हैं।
सामना में आगे कहा गया है कि संप्रग में कुछ गड़बड़ है और विपक्ष को एकजुट करने के लिए नेतृत्व की जरूरत है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य राज्यों में नेता भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन वे यूपीए के बैनर तले नहीं आना चाहते। ममता बनर्जी ने राकांपा प्रमुख शरद पवार की मदद ली, क्योंकि भाजपा सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर बंगाल में राज्य सरकार पर दबाव बना रही थी।
शरद पवार पश्चिम बंगाल जा रहे हैं। यही समय है, जब विपक्ष एकजुट हो और ममता बनर्जी को समर्थन दे, तभी भाजपा पर दबाव बनाया जा सकता है।
सामना में कहा गया है कि फिलहाल, लोकतंत्र का अधोपतन शुरू हो गया है, उसके लिए भारतीय जनता पार्टी या मोदी-शाह की सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि विरोधी दल सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। वर्तमान स्थिति में सरकार को दोष देने की बजाय विरोधियों को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। शिवसेना के मुखपत्र में लिखा गया, गुरुवार को कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में किसानों के समर्थन में एक मोर्चा निकाला। राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर वाला निवेदन पत्र लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे। वहीं विजय चौक पर प्रियंका गांधी आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। गत 5 सालों में कई आंदोलन हुए। सरकार ने उनको लेकर कोई गंभीरता दिखाई हो, ऐसा नहीं हुआ। यह विरोधी दल की ही दुर्दशा है। सरकार के मन में विरोधी दल का अस्तित्व ही नहीं है।
