इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में ये कहावत `घर में ही आग लगी घर के चिराग से’ बिलकुल सटीक बैठ रही है. दरअसल रविवार सुबह शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में बेरोकटोक जहरीले तीर चलाए और कांग्रेस के औरंगाबाद शहर के नाम बदलने के विरोध की जमकर खिल्ली उड़ाई. साथ ही यह सवाल पूछा कि औरंगजेब के प्रति आकर्षण का कारण क्या है? और अगर औरंगजेब को लेकर कोई आकर्षण नहीं है तो औरंगाबाद शहर का नाम संभाजीनगर किए जाने में दिक्कत क्या है? लेकिन शाम होते-होते कांग्रेस की तरफ से शिवसेना को उसी की भाषा में जवाब आ गया. यानी एक ही सरकार में शामिल दो पार्टियां आपस में ही उलझ पड़ीं हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहब थोरात ने नामांतरण के मुद्दे पर शिवसेना को करारा जवाब दिया है. थोरात ने शिवसेना पर हमले करते हुए सवाल उठाया है कि जब शिवसेना भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला रही थी तब उन्हें नामांतरण का मुद्दा क्यों नहीं याद आया? शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस ने भाजपा को भी अपने निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा है “5 साल साथ-साथ सत्ता में रहकर नामांतरण के मुद्दे को भूल जाने वाले आज यह मुद्दा उठा रहे हैं, मौके का फायदा उठा रहे हैं. यह साफ-साफ एक ढोंग है, और कुछ नहीं.” कांग्रेस का हमला यहीं नहीं रुका. कांग्रेस की तरफ से प्रदेशाध्यक्ष बालासाहब थोरात ने कहा “औरंगाबाद वासियों की अपेक्षा यह है कि ये दोनों पार्टियां उन्हें बताएं कि पिछले कई सालों से सरकार में रहकर इन दोनों ने औरंगाबाद के विकास के लिए क्या किया. महानगरपालिका की सत्ता हाथ में रहते हुए इन दोनों ने जनता को सिर्फ और सिर्फ भ्रमित किया है. यही वजह है कि चुनाव आते ही इन्हें नामांतरण का मुद्दा सूझ रहा है. यह हथकंडा ज्यादा देर तक चलने वाला नहीं है. औरंगाबाद की जनता के लिए आज नामांतरण के ज्यादा विकास के सवाल अहम हैं.” बालासाहब थोरात कहते हैं, “महाराष्ट्र सरकार अस्थिर होगी इस भ्रम में रहने की कोई वजह नहीं है. हम तीनों पार्टियों ने अच्छी तरह से सोच-विचार करके महाराष्ट्र की जनता के हित के लिए सरकार बनाई है. सरकार बनाते वक्त हम सबने मिलकर एक ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ बनाया है. इस कार्यक्रम से महाराष्ट्र के किसानों, मेहनतकशों, गरीबों के कल्याण के विचार जुड़े हैं.