
जापान के पीएम शिगेरू इशिबा ने अचानक दे दिया इस्तीफा,
जापान के पीएम शिगेरू इशिबा ने अचानक दे दिया इस्तीफा, जानें क्यों उठाना पड़ा ये कदम
जापान की सियासत में बड़ा बदलाव होने वाला है। दरअसल, जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने इस्तीफ़ा दे दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होनें ये फैसला अपनी सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) में बढ़ते विभाजन को रोकने के लिए लिया है। आपको बता दें कि शिगेरु इशिबा ने पिछले साल अक्टूबर में ही प्रधानमंत्री का पद संभाला था। लेकिन इस साल जुलाई के चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को तेज झटका लगा। जुलाई के चुनावी हार के बाद LDP में इशिबा के खिलाफ बगावत तेज हो गई। 248 सीटों वाले उच्च सदन में बहुमत हासिल करने में विफल रहने के बाद उनकी सरकार की स्थिरता पर सवाल उठने लगे थे। उनके ऊपर हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ने का भारी दबाव था, इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया है। वहीं अब LDP में नया पीएम चुनने की जंग शुरू होगी। हाल ही में PM मोदी के साथ उनकी मुलाकात और भारत-जापान के बीच 10 ट्रिलियन येन के निवेश की डील भले ही चर्चा में रही। लेकिन ऐसे में सवाल ये है कि क्या जापान का नया पीएम भारत के साथ रिश्तों को उतनी ही मजबूती देगा?
हार के पीछे का कारण क्या?
जापानी रिपोर्ट्स के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप के 15% टैरिफ ने जापानी ऑटो इंडस्ट्री को चिंता में डाल दिया था। इसके साथ ही पीएम शिगेरू इशिबा पर महंगाई और आर्थिक दबाव था, जनता बढ़ती कीमतों और आर्थिक ठहराव से नाराज थी। इन सभी के साथ-साथ एक कारण यह भी था कि पूर्व पीएम फुमियो किशिदा के कार्यकाल में फंडिंग स्कैंडल ने पार्टी की छवि खराब की थी। इन सबके बावजूद इशिबा ने शुरुआत में इस्तीफा देने से इनकार किया था, लेकिन पार्टी के दबाव और जनता के गुस्से ने उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। रविवार तक इस्तीफ़ा देने से इनकार कर रहे इशिबा ने आखिरकार यह फ़ैसला ले लिया।
कौन है शिगेरु इशिबा?
शिगेरु इशिबा जापान के 102वें पीएम हैं। इशिबा का जन्म 4 फरवरी 1957 में टोक्यो में हुआ था। सन् 1983 में वह राजनीति में शामिल हो गए। सन् 1986 में टोट्टोरी से सांसद बने, फिर साल 2007 से 2008 तक पूर्व रक्षा मंत्री रहे, इसके बाद साल 2008 से लेकर 2009 तक कृषि मंत्री रहे, और साल 2012 से 2014 तक LDP महासचिव में कार्यरत रहे। इशिबा को उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव के लिए जाना जाता है। क्योंकि वह टाउन हॉल मीटिंग्स में जनता की बात सुनते थे और रक्षा नीतियों के विशेषज्ञ माने जाते थे।
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