Dark Mode
  • Tuesday, 09 September 2025
साल 2025 में कब है वामन जयंती?

साल 2025 में कब है वामन जयंती?

साल 2025 में कब है वामन जयंती? जानिए व्रत की विधि और पूजा के शुभ समय के बारे में

हर साल भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘वामन जयंती’ मनाई जाती है। धार्मिक पुराणों के अनुसार, विष्णु जी के कुल 24 अवतार हैं, जिनमें वामन अवतार श्री हरि का पांचवां अवतार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि असुर बली की बढ़ती शक्तियों को देखते हुए देवताओं के हित के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। विष्णुजी के इस अवतार का वर्णन श्रीमद् भागवत पुराण और विष्णु पुराण में भी किया गया है। धार्मिक पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में एक बौने ब्राह्मण का रूप लिया था। ऐसी मान्यता है कि हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा करने से उनकी कृपा मिलती है। आइए जानते हैं प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध जल स्नान कराएं।

 

कब है वामन जयंती?

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का आरंभ 04 सितंबर को सुबह 04 बजकर 21 मिनट पर होगा और इसका समापन 05 सितंबर को सुबह 04 बजकर 08 मिनट पर होगा। ऐसे में वामन जयन्ती 04 सितंबर दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। कहते हैं इस व्रत को करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

 

वामन जयंती पूजा विधि

* जानिए कब है वामन जयंती का शुभ समय और कैसे करें पूजा

 

* पूजा स्थल पर भगवान वामन की मूर्ति या चित्र स्थापित करें

 

* प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध जल स्नान कराएं

 

* भगवान वामन की अच्छे से पूजन करने के बाद आरती ज़रुर करें

 

* इस दिन फलाहार या सात्विक उपवास ही रखें

 

* भगवान वामन की मूर्ति की प्रतिमा के सामने 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर पूजा करें

 

* भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप और सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें

 

* भगवान वामन को भोग लगाकर ब्राह्मण को दही-चावल चीनी का दान करें

 

* इस दिन पशुओं को अन्न और दही खिलाना शुभ माना जाता है

 

 

वामन जयंती महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए वामन अवतार धारण किया। इस अवतार में उन्होंने एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण किया। भगवान वामन ने अपनी लीला से राजा बलि से तीन पग भूमि दान स्वरूप मांग ली। वामन अवतार में विष्णु ने जब पहला कदम बढ़ाया तो संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे कदम में पूरे आकाश को अपने वश में कर लिया। तीसरे पग के लिए जब कोई स्थान शेष नहीं रहा, तब राजा बलि ने विनम्रता से अपना शीश समर्पित कर दिया और वामन जी ने अपना तीसरा पग सिर पर रख दिया। इस प्रकार राजा बाली ने अपना वचन पूरा किया। यह दिन अहंकार का नाश करने और दान पुण्य करके जीवन में सफलता पाने के लिए शुभ माना जाता है।

Comment / Reply From

Newsletter

Subscribe to our mailing list to get the new updates!