छोटी दिवाली, बड़ी दिवाली और फिर हिमाचल की ‘बूढ़ी दिवाली’
अयोध्या से देर पहुँची खबर पर मनाया गया पर्व, मशालों से रोशन होती हैं घाटियां
देशभर में जहां छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली हर्षोल्लास से मनाई जाती है, वहीं हिमाचल प्रदेश में इन दोनों के लगभग एक माह बाद मनाई जाती है ‘बूढ़ी दिवाली’। यह लोक-परंपरागत पर्व आज भी सिरमौर, कुल्लू, शिमला और लाहौल-स्पीति जैसे जिलों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
लोककथा के अनुसार, जब भगवान राम के अयोध्या लौटने और दिवाली मनाए जाने की खबर हिमालय की ऊंची पहाड़ियों तक पहुंची, तब तक एक महीना बीत चुका था। इस देरी से मिली खुशी को लोगों ने मशालें जलाकर, नाच-गाकर और मिठाइयां बांटकर मनाया। तभी से यह पर्व “बूढ़ी दिवाली” कहलाया। यह पर्व मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या को मनाया जाता है, जो दिवाली के लगभग एक माह बाद आती है। इसे देरी से प्राप्त दिवाली की खुशियों का प्रतीक माना जाता है।
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