अमेरिकी वैज्ञानिक संस्था ने सैटेलाइट इमेज के द्वारा साफ किया कि तुर्की में जमीन खिसक गई
नई दिल्ली । भूकंपों की स्टडी करने वाली अमेरिकी वैज्ञानिक संस्था.यह लगातार तुर्की और सीरिया में आए 7.8 और 7.5 तीव्रता के भूकंपों की स्टडी कर रहा है। संस्था ने सैटेलाइट इमेज के जरिए इस पुख्ता कर दिया है, कि तुर्की में जमीन खिसक गई है। यूएसजीएस की तस्वीर में दोनों भूकंपों से सतह पर कहां-कहां दरारें बनी हैं, वहां दिख रहा है।
साथ ही उसने एक जगह की सैटेलाइट इमेज दी है। इसमें एक मैदान में दो सड़कें दिख रही हैं, जो दो हिस्सों में बंट गई हैं। क्योंकि सड़कों के बीच से ही फॉल्ट लाइन जा रही थी। भूकंप की वजह से फॉल्ट लाइन हिल गई। सतह पर दरार पड़ गई। ये यूएसजीएस की प्राइमरी रिपोर्ट है। लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों को झुठलाया नहीं जा सकता।
रिपोर्ट के मुताबिक यह फॉल्ट लाइन में आई दरार करीब 300 किलोमीटर लंबी है रिसर्च के मुताबिक तीन फॉल्ट लाइन अंदर से टूटी हैं। ये घटना करीब कुल मिलाकर 500 किलोमीटर की दूरी तक में हुई है। तुर्की के एक एक्सपर्ट और अमेरिकी संस्था एक ही बात कह रहे हैं। इसके ठीक पहले, इटली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड वॉल्कैनोलॉजी के प्रमुख प्रो.कार्लो डॉगलियोनी का दावा है, कि तुर्की-सीरिया में जो भूकंप आए हैं। उनकी वजह से तुर्की की जमीन 10 फीट खिसक गई है।
प्रो. कार्लो ने दावा तुर्की के कहरामनमारस और मलताया के बीच मौजूद फॉल्ट लाइन में आए भूकंपों की स्टडी करने के बाद बताया। तुर्की का ज्यादातर हिस्सा एनाटोलियन माइक्रोप्लेट पर मौजूद है। लेकिन दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी हिस्सा अरेबियन प्लेट पर आता है। अरेबियन प्लेट पर आने वाले इलाकों का नाम है, गजियांटेप, अद्यामन, दियारबकिर, सनिलउर्फा, मारदिन, बैटमैन, सिर्त, बिंगोई, मुस, बिटलिस, सिमक, वान, एरजुरम, अग्न, इग्दिन, हक्कारी।
प्रो.कार्लो कहते हैं कि ये सारा कुछ तुर्की की तीन बड़ी फॉल्ट लाइन्स की वजह से हो रहा है। इन फॉल्ट लाइस एक दूसरे के ऊपर काफी झुकी हुई हैं। इनके निचले हिस्से में खिसकाव हुआ है। यानी फॉल्ट लाइन के दो हिस्सों की दूरी बढ़ी है। यानी तुर्की की प्लेट अरेबियन प्लेट से अलग दिशा में आगे बढ़ी है।
इस बीच, डरहम यूनिवर्सिटी के प्रो. बॉब होल्ड्सवर्थ ने कहा कि भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों द्वारा एकदूसरे के ऊपर चढ़ने या धकेलने या फिर अलग होने से आते हैं। प्रो. बॉब कहते हैं कि प्राकृतिक नियम है जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर 6.5 से 6.9 या उससे ऊपर का कोई भूकंप आता है तब यह किसी भी टेक्टोनिक प्लेट को एक मीटर यानी करीब तीन फीट खिसका सकता है।
News Editor
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