इसरो का लॉन्च किया गया सबसे भारी सैटेलाइट सीएमएस-03 बहुत है खास, जानें इसका टारगेट
नई दिल्ली,। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और बड़ा कदम बढ़ाते हुए गत दिवस अब तक का सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट सीएमएस-03 लॉन्च किया। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5:26 बजे स्वदेशी ‘बाहुबली’ रॉकेट एलवीएम3-एम5 के जरिए अंतरिक्ष में भेजा गया। लगभग 4,400 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह भारत का अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है।
यहां बताते चलें कि एलवीएम-3 रॉकेट की ऊंचाई करीब 43.5 मीटर है, यानी यह 15 मंजिला इमारत के बराबर है। यह रॉकेट तीन स्टेज में काम करता है: पहले चरण में 5200 बूस्टर लॉन्च के वक्त जोरदार थ्रस्ट देते हैं, दूसरे चरण में आईएल110 लिक्विड इंजन रफ्तार बढ़ाता है और तीसरे चरण का सी25 क्रायोजेनिक इंजन सैटेलाइट को सही कक्षा में स्थापित करता है।
इसरो के अनुसार, सीएमएस-03 भारत और उसके आसपास के समुद्री इलाकों में अगले 15 वर्षों तक मोबाइल नेटवर्क, इंटरनेट, टीवी प्रसारण और समुद्री संचार सेवाओं को मजबूत करेगा। यह मिशन भारत की डिजिटल और सामरिक क्षमताओं के लिए मील का पत्थर माना जा रहा है।
इस सैटेलाइट के मिलेंगे बड़े फायदे
इससे डिजिटल कनेक्टिविटी में बढ़ोतरी मिलेगी। सुदूर गांवों, पहाड़ी और समुद्री इलाकों तक मोबाइल नेटवर्क, टीवी और इंटरनेट सेवाओं की पहुंच बढ़ेगी। इससे देश के हर हिस्से को बेहतर डिजिटल सुविधा मिलेगी। इसके साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा। जिन क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज या अस्पतालों की कमी है, वहां ऑनलाइन एजुकेशन और टेलीमेडिसिन के माध्यम से लोगों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी।
आपात स्थितियों में होगा मददगार
बाढ़, चक्रवात या भूकंप जैसी आपदाओं में भी संपर्क प्रणाली बनी रहेगी। राहत और बचाव दलों को रीयल टाइम सूचना और बेहतर समन्वय में मदद मिलेगी। नौसेना और तटीय सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। यह सैटेलाइट भारतीय नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और विमानों को रीयल टाइम कम्युनिकेशन सुविधा देगा, जिससे समुद्री सीमाओं पर निगरानी और संचालन और अधिक सटीक होंगे।
आत्मनिर्भरता और वैश्विक पहचान
सबसे बड़ी बात यह कि अब भारत अपने भारी उपग्रहों को खुद लॉन्च करने में सक्षम हो गया है। इससे विदेशी एजेंसियों पर निर्भरता घटेगी और भारत वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरेगा। इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे भारत की डिजिटल सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है।
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