तीखी बहस के बीच 75 के नियम को दिखाया ठेंगा, खुद सीपीआई महासचिव बन बैठे डी राजा
नई दिल्ली,। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की अपनी गाइडलाइन है कि 75 साल की आयू पूरी होते ही पार्टी नेता खुद ही खुद को पद से दूर कर लेंगे। इस बार सब कुछ दरकिनार कर दिया गया और डी राजा 76 साल की उम्र में सीपीआई के महासचिव बन बैठे। हालांकि इस पर पार्टी के भीतर ही भीतर तीखी बहस होने की खबर है। बता दें कि उनसे पहले 75 वर्ष की आयु पार कर चुके सीपीआई के कई वरिष्ठ नेता पार्टी के आयु मानदंड का पालन करने के लिए अपने-अपने पदों से हटने का विकल्प चुन चुके हैं।
21 से 25 सितंबर तक चंडीगढ़ में हुए सीपीआई के राष्ट्रीय सम्मेलन में देश भर से 800 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसी दौरान सम्मेलन के अंतिम दिन डी राजा का फिर से महासचिव के पद पर चुनाव हुआ। डी राजा 76 साल के हैं, जबकि पार्टी के अंदर एक नियम चलता आ रहा था कि 75 वर्ष से ज्यादा उम्र के नेता खुद से अपने को इस पद से दूर कर लेते थे। हालांकि, पार्टी सम्मेलन में इस मुद्दे पर तीखी और गरमागरम बहस हुई। लेकिन नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत पर आंतरिक बहस के बाद पार्टी ने डी राजा को 75 वर्ष की आयु सीमा के मानक से छूट देते हुए फिर से महासचिव के रूप में चुन लिया। सम्मेलन में कई नेताओं ने डी राजा से आयु सीमा का पालन करने की मांग की लेकिन राजा ने बुधवार को केंद्रीय कार्य यमिति की बैठक में इस पद पर बने रहने की अपनी इच्छा जताई। रिपोर्ट में पार्टी पदाधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि डी राजा ने बिहार चुनाव और अन्य दलों के साथ बातचीत के अपने अनुभव का हवाला देते हुए ना सिर्फ अपनी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि पर ज़ोर दिया बल्कि एक भावुक अपील भी की। इसके बाद पार्टी ने उन्हें फिर से महासचिव चुनने का फैसला कर लिया।
इस चुनाव में पार्टी ने अमरजीत कौर और गिरीश शर्मा सहित 11 सदस्यीय राष्ट्रीय सचिवालय और 31 सदस्यीय कार्यकारी समिति के गठन की भी घोषणा की। पार्टी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि पंजाब के वरिष्ठ भाकपा नेता हरदेव अर्शी को ‘सेंट्रल कंट्रोल कमीशन’ का सदस्य चुना गया। यह पार्टी के शताब्दी वर्ष का भी अवसर था। बृहस्पतिवार को हुई कार्यवाही के दौरान सीपीआई ने कई प्रस्ताव भी पारित किए, जिनमें पंजाब के नेता अर्शी ने अटारी-वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान के साथ व्यापार बहाल करने की मांग की। सीपीआई के राज्य सचिव बंत बरार ने एक अन्य प्रस्ताव पेश किया, जिसमें अपनी सजा पूरी कर चुके सभी कैदियों की रिहाई की मांग की गई। एक अन्य प्रस्ताव में, सीपीआई ने भाजपा-आरएसएस के खिलाफ वैचारिक और सैद्धांतिक संघर्ष को तेज करने का भी संकल्प व्यक्त किया।
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