
दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाया तो लोक व्यवस्था पर कंट्रोल हो जाएगा खत्म
नई दिल्ली। दिल्ली में एलजी और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की जंग सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है। गुरुवार को इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यूनियन सर्विस यूनियन पब्लिक सर्विस और यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन यह सब आल इंडिया सर्विस के दायरे में आते हैं और वहीं से गर्वन होते हैं। ऐसे में यदि दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाया गया तो दिल्ली में लोक व्यवस्था संघ के लिए काफी मुश्किल हो सकता है।
उन्होंने कहा कि यहां सवाल केवल दिल्ली का नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजधानी के बारे में है। इसका असर दूर तक होगा। शीर्ष कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि दिल्ली को एक अलग अवधारणा के तहत गठित किया गया था। दिल्ली पार्ट सी राज्यों की श्रेणी में आता है। यह पूर्ण राज्य नहीं है बल्कि इसे केंद्र शासित क्षेत्र संघ का ही विस्तारण का जा सकता है। इस तरह के राज्य कई प्रकार के हो सकते है।
कुछ के पास विधानमंडल हो सकता है कुछ में नहीं भी होता। अंततः केंद्रीय शासित क्षेत्र का प्रभुत्व और नियंत्रण न केवल समय की आवश्यकता है बल्कि हमेशा ऐसा रहेगा। केंद्र सरकार ने कहा कि दिल्ली की एक विशिष्ट स्थिति है। इसे सभी राज्यों को अपनेपन की भावना सुनिश्चित करना है। गृह मंत्री ने भी यह कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी पर राष्ट्रीय सरकार का पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। यह 239 एए की पूर्वगामी है।
केंद्र ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली एक ऐसा महानगरीय लघु भारत है जो भारत में है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखें तो दिल्ली चीफ कमिश्नर प्रोविजन रहा है संघीय राज्य कभी नहीं रहा। संविधान के लागू होने से पहले स्वतंत्रता से भी पहले इसे ऐसे ही रखा गया था। बल्कि संविधान सभा ने अनुरोध किया था कि दिल्ली की विशेष जिम्मेदारी होनी चाहिए। इसकी वजह बताई गई थी कि यह राष्ट्रीय राजधानी है और दुनिया में कोई भी राष्ट्र अपनी राजधानी से ही जाना जाता है।
केंद्र सरकार ने इस मामले में अपना फाइनल पक्ष रखते हुए कहा कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना वैधानिक नहीं है। यदि ऐसा होता है तो संघ के लिए लोक व्यवस्था जन स्वास्थ्य अनिवार्य सेवाओं आदि पर नियंत्रण रख पाना असंभव होगा। कहा कि यह महज नियंत्रण या किसी अधिकार क्षेत्र की बात नहीं है बल्कि यह सीधे तौर पर भारत के संविधान की व्याख्या का मामला है।
दिल्ली में सरकार और एलजी के बीच क्षेत्राधिकार का विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले बीजेपी भी जब यहां सत्ता में थी तो एलजी के खिलाफ खूब आरोप प्रत्यारोप लगाए थे वहीं अब चूंकि बीजेपी केंद्र की सत्ता पर काबिज है इसलिए दिल्ली सरकार को अधिकार का विरोध कर रही है। उधर आम आदमी पार्टी तो इसी मुद्दे को लेकर चुनाव में उतरी थी और चुनाव जीतने के बाद से लगातार इसे उठाती रही है। यह टकराव उस समय और बढ़ जाता है जब एलजी सरकार के किसी प्रस्ताव को रोक देते हैं।

News Editor
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