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  • Saturday, 20 December 2025
परमाणु दुर्घटनाओं से निपटने के लिए “न्यूक्लियर देयदायित्व निधि” की हो रही तैयारी

परमाणु दुर्घटनाओं से निपटने के लिए “न्यूक्लियर देयदायित्व निधि” की हो रही तैयारी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार देश में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को मज़बूती देने और निवेश आकर्षित करने के लिए एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। केंद्र सरकार अब एक ऐसे प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार कर रही है जिसके तहत देश में संभावित परमाणु दुर्घटनाओं की स्थिति से निपटने और प्रभावितों को पर्याप्त मुआवज़ा देने के लिए एक विशेष “न्यूक्लियर देयदायित्व निधि” (न्यूक्लियर लाइबिलिटी फण्ड) स्थापित की जाएगी।


यह निधि उस स्थिति में उपयोग की जाएगी जब किसी परमाणु संयंत्र में दुर्घटना हो और मुआवज़े की राशि 1,500 करोड़ रुपए से अधिक हो जाए। मौजूदा समय में भारत में इस तरह की परिस्थितियों के लिए कोई स्थायी और संगठित व्यवस्था नहीं है। ज़्यादातर मामलों में मुआवज़े की व्यवस्था अस्थायी और अनियमित, एढोक रूप में की जाती है। नई प्रस्तावित निधि इस कमी को दूर करेगी और मुआवज़ा प्रणाली को औपचारिक, पारदर्शी और गंभीर बनाएगी। सूत्रों के अनुसार, इस नई पहल का एक प्रमुख उद्देश्य भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ाना है। अब तक कई विदेशी कंपनियाँ और तकनीकी साझेदार भारत के सख्त देयदायित्व कानूनों के कारण निवेश करने से हिचकिचाती रही हैं। नई निधि उनके लिए एक सुरक्षा कवच का काम करेगी और उन्हें भारत में संयंत्र लगाने और तकनीक उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहित करेगी।


वर्तमान में भारत में परमाणु दुर्घटना के लिए मुआवज़ा तय करने की व्यवस्था 2010 के सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट” के तहत है। इसमें ऑपरेटर पर अधिकतम 1,500 करोड़ तक की ज़िम्मेदारी तय की गई है। हालांकि, बड़ी दुर्घटनाओं में मुआवज़े की ज़रूरत इससे कहीं अधिक हो सकती है। नई निधि बनने पर इस सीमा से ऊपर के दावों को भी आसानी से निपटाया जा सकेगा।


विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से भारत में आने वाले वर्षों में परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के विस्तार को गति मिलेगी। वर्तमान में भारत की कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग 3 फ़ीसदी है, जिसे सरकार अगले दशक में 10 फ़ीसदी तक ले जाने की योजना पर काम कर रही है।विश्व के कई देशों में इस तरह की विशेष निधियां पहले से ही मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका और फ्रांस में परमाणु दुर्घटनाओं के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय फंड बनाए गए हैं। भारत में भी ऐसी व्यवस्था बनने से देश वैश्विक मानकों के करीब पहुंचेगा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मज़बूती मिलेगी। योजना से जुड़े आला सूत्रों ने कहा कि सरकार का यह प्रस्ताव भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे न केवल दुर्घटनाओं के दौरान पीड़ितों को शीघ्र और पर्याप्त मुआवज़ा मिल सकेगा, बल्कि देश में नई तकनीकों और निवेश के लिए भी रास्ता खुलेगा।

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