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  • Tuesday, 19 August 2025
इस गांव में कोई नहीं पहनता कपड़े, घूमने आने वालों पर भी लागू है नियम! जानिए अजीबोगरीब रिवाज़ के पीछे की वजह ...

इस गांव में कोई नहीं पहनता कपड़े, घूमने आने वालों पर भी लागू है नियम! जानिए अजीबोगरीब रिवाज़ के पीछे की वजह ...

दुनिया में अजीबोगरीब चीज़ों की कमी नहीं है. कुछ ऐसी जगहें होती हैं, जो हमें आश्चर्यचकित कर देती हैं. मसलन अगर किसी जगह पर लोग कुछ खास चीज़ें नहीं खाते हैं या कुछ ऐसा पहनते हैं, जो और कहीं नहीं पहना जाता. आपने ऐसी जनजातियों के बारे में सुना होगा, जहां लोग सिले हुए कपड़े आज तक नहीं पहनते हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जहां लोग कपड़े ही नहीं पहनते हैं.

भारत में एक ऐसा गांव है, जहां महिलाएं 5 दिनों के लिए कपड़े नहीं पहनतीं, लेकिन हम जिस जगह की बात कर रहे हैं वो ब्रिटेन में है. ऐसा नहीं है कि ये लोग किसी जनजाति से संबंधित हैं और इनके पास कपड़े खरीदने के पैसे नहीं हैं. धन-दौलत होने के बाद भी यहां महिलाएं-पुरुष और बच्चे भी बिना कपड़ों के ही रहते हैं. ये हर्टफोर्डशायर में मौजूद है और इसका नाम स्पीलप्लाट्ज है.

इस गांव में कोई नहीं पहनता कपड़े …
स्पीलप्लाट्ज़ नाम का ये काम कई बार सुर्खियां बटोर चुका है क्योंकि यहां के लोग बिना कपड़ों के ही रहते हैं. इस गांव में ये परंपरा करी 85 सालों से चली आ रही है. यहां रहने वाले लोग कोई दुनिया से कटे नहीं हैं. वे पूरी तरह शिक्षित और अमीर भी हैं. आम लोगों की तरह उन्हें क्लबिंग, पब और स्वीमिंग पूल का भी शौक है. बावजूद इसके ये लोग न तो कपड़े खरीदते हैं और न ही पहनते हैं. बच्चे-बूढ़े, महिला-पुरुष, हर कोई यहां बिना कपड़ों के ही रहता है और उन्हें इसमें कुछ भी असहज नहीं लगता है. इस गांव को साल 1929 में इसुल्ट रिचर्डसन ने खोजा था.

पर्यटकों पर भी लागू है नियम
यहां पर जो लोग घूमने के लिए आते हैं, उनके लिए भी व्यवस्था वही है. अगर उन्हें यहां रहना है तो बिना कपड़ों के ही रहना होगा. हालांकि सर्दियों में लोग कपड़े पहन सकते हैं या फिर अगर उनकी इच्छा है, तो भी कपड़े पहनने पर उन्हें कोई रोकेगा नहीं. इसके अलावा गांव से बाहर शहर जाते हुए भी लोग कपड़े पहन लेते हैं लेकिन वापस आते ही वो फिर से बिना कपड़ों के रहने लगते हैं. लोग आज़ादी महसूस करने के लिए ऐसा करते हैं. आपस में लोग इसके परिचित और घुले-मिले हैं कि उन्हें इसमें कुछ भी असहज नहीं लगता. पहले कुछ सामाजिक संस्थाएं इसका विरोध करती थीं लेकिन अब कोई कुछ नहीं कहता.

 

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