
उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में फट रहे बादल, तलाशे जा रहे हैं कारण
नई दिल्ली,। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मंगलवार को फटे बादल ने एक बार फिर इस व्यापक संकट की ओर दुनिया का ध्यान खींचा है। इस घटना में कम से कम 15 लोगों की जान गई है। इससे पहले इसी उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में इस मानसून सीजन में ही कई बार बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं। इस दौरान भूस्खलन, नदियों में उफान, रिहायश वाले इलाकों में कीचड़ का जमाव और बाढ़ जैसी आपदा देखी गई। हाईवे-सड़कें टूट गए। जान-माल का भारी नुकसान हुआ। हालांकि, मानसून के सीजन में हिमालय के क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं असामान्य नहीं हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इनकी तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि चिंताजनक है। यह केवल प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि भू-आकृति विज्ञान (टोपोग्राफी) और जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। इसने हिमालय को और अधिक संवेदनशील बना दिया है। मानसून इस सीजन में असामान्य रूप से सक्रिय रहा है। देश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पिछले डेढ़ महीने से लगातार बारिश हो रही है।
बंगाल की खाड़ी में बने कम दबाव वाले सिस्टम सामान्य से अधिक उत्तर की ओर बढ़े हैं, जिससे हिमालय के इलाकों में तीव्र वर्षा हुई।
रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त में इस क्षेत्र में 34 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई, जबकि जून-सितंबर तक कुल मानसून में 30 फीसदी से अधिक अधिशेष रहा। सितंबर के पहले भाग में वर्षा सामान्य से 67 फीसदी अधिक रही। यह अधिशेष वर्षा हिमालय की भू-आकृति के कारण और घातक हो जाती है। समतल मैदानों में 300 मिमी या अधिक बारिश 24 घंटों में सहन की जा सकती है, जैसे गोवा, कोकण, कर्नाटक के तटीय इलाके, केरल या मेघालय में होता है। लेकिन हिमालय में खासकर पश्चिमी हिमालय के जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में यही मात्रा विनाशकारी साबित होती है।
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