
रिटायर होने के बाद भी जजों को ज्यादा बोलने के प्रलोभन से बचना चाहिए
-जस्टिस नरसिम्हा ने कहा- न्याय सुनिश्चित करने जजों का गायब रहना जरूरी
नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा है कि रिटायर होने के बाद भी जजों को खुलकर या ज्यादा बोलने के प्रलोभन से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि जजों को अपने मुंह से ज्यादा अपने फैसलों के जरिए बोलना चाहिए। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि आज के सोशल मीडिया के इस दौर में जहां हर शब्द की रिपोर्टिंग की जाती है, वहां जजों को अपने फैसलों में लिखी बातों से आगे बढ़कर बोलने के प्रलोभन से बचना चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि खासकर रिटायरमेंट के बाद जजों को ऐसे प्रलोभन से बचना चाहिए। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है, जब पूर्व सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपने कुछ बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। इसके अलावा पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अभय एस ओका भी कॉलेजियम के फैसलों समेत कई मुद्दों पर सवाल उठा चुके हैं। इन सबके बीच जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया और ज्यादा बोलने की जरूरत के कारण हम बोलने में संयम बरतने से दूर होते जा रहे हैं। आज हर शब्द खबरों में आ जाता है और मौजूदा जज इससे प्रभावित हो सकते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि सेवानिवृत्ति के बाद जज सोचते हैं कि अब समय आ गया है कि मुझे बोलना चाहिए, मानो यह कोई पूर्णकालिक बातचीत हो। मुझे लगता है कि व्यवस्था को इस तरह से काम नहीं करना चाहिए।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नरसिम्हा ने अपने सहयोगी जस्टिस एएस चंदुरकर की तारीफ करते हुए कहा कि वह ऐसे जज हैं जो अपने फैसलों के जरिए ही बोलते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए जजों का गायब रहना जरूरी है। न्यायाधीशों को सार्वजनिक तौर पर दिखाई नहीं देना चाहिए, जज का इस प्रक्रिया में मौजूद रहने का कोई काम नहीं है, सिवाय इसके कि वह फैसला करें। एक व्यक्ति के रूप में उसका व्यक्तित्व...यह सब गैर जरूरी है। न्यायाधीश फैसला लेने के अलावा और कुछ नहीं करता, और वह गायब हो जाता है। जस्टिस चंदुरकर एक ऐसे जज हैं जो गायब हो गए हैं, लेकिन उनके फैसले बोलते हैं और वे बहुत कुछ कहते हैं।
जस्टिस नरसिम्हा बॉम्बे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की नागपुर बेंच द्वारा जस्टिस चंदुरकर के लिए आयोजित एक सम्मान समारोह में बोल रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे कानूनी पेशा लगातार दो मूल्यों से जूझता रहता है। उन्होंने कहा कि वकीलों के लिए वकालत में वाणी जरुरी है, जबकि न्यायाधीशों के लिए वह लिखित फैसलों में अभिव्यक्त होती है। चुनौती यह तय करने में है कि वकालत और न्याय, दोनों ही सत्य को उजागर करने के साधन बने रहें। उन्होंने कहा, सत्य का गूढ़ रहस्य न्यायपालिका का उद्देश्य और लक्ष्य है, और उस सत्य को खोजने का माध्यम संवाद और न्यायालय के समक्ष तर्क-वितर्क है।
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