
तमिलनाडु में ‘जंगलों की दुश्मन’ लेट्टाना घास बनी आदिवासियों का सहारा
रोज़गार का नया मॉडल कर रहे पेश
कोयंबटूर तमिलनाडु के जंगलों में पर्यावरण के लिए खतरा मानी जाने वाली लेट्टाना घास अब वहां के आदिवासियों की आजीविका का साधन बन गई है। यह वही घास है जो स्थानीय पौधों को नष्ट कर देती है और भूजल स्तर को गिराने के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। लेकिन अब इस “जंगलों की दुश्मन” घास से हरित ऊर्जा और रोजगार दोनों पैदा हो रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हसूर वन क्षेत्र के शलवाड़ी गांव में आदिवासी मुत्रत्र संघ के प्रमुख शृकाविदेवन ने देश की पहली लेट्टाना फ्यूल फैक्ट्री शुरू की है। यहां स्थानीय आदिवासी जंगलों से लेट्टाना घास काटकर लाते हैं, जिसे फैक्ट्री में ब्रिकेट्स यानी ठोस ईंधन में बदला जाता है। यह ब्रिकेट्स कोयले की तरह जलते हैं और कम कीमत पर उपलब्ध हैं। मीडिया से बातचीत के दौरान शृकाविदेवन ने बताया, कि बाजार में कोयला 9 रुपये किलो बिकता है, जबकि हम लेट्टाना ब्रिकेट्स 8 रुपये किलो में बेचते हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को फायदा होता है, बल्कि हर किलो पर हमें 4–5 रुपये का मुनाफा भी मिलता है। इस पहल से अब तक 500 टन लेट्टाना घास हटाई जा चुकी है और 350 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिला है।
उत्पाद भी हो रहे लोकप्रिय
सिर्फ ईंधन ही नहीं, बल्कि इस घास से बने उत्पाद भी बाजार में लोकप्रिय हो रहे हैं। कोयंबटूर के अनामलाई टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में स्थानीय कारीगर इस घास से सोफा, कुर्सी और टेबल जैसे फर्नीचर तैयार कर रहे हैं। ये उत्पाद सस्ते, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल हैं। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, यह मॉडल न केवल आदिवासियों के लिए रोजगार का नया अवसर बना है बल्कि जैव विविधता की रक्षा में भी मददगार साबित हो रहा है। पहले जहां लेट्टाना घास जंगलों की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रही थी, अब वही घास स्थानीय समुदायों के जीवन में उजाला भर रही है।
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