
पाक-सऊदी समझौते पर दुनियाभर में चर्चा, पर भारत दे रहा संयमित प्रतिक्रिया
नई दिल्ली। पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ नया स्ट्रैटेजिक म्युचुअल डिफेंस एग्रीमेंट भारत सहित पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बन गया है। इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तब दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और दोनों मिलकर जवाब देने को तैयार है। इसके बाद सवाल उठ रहा है कि अगर भारत पाकिस्तान के खिलाफ कोई सैन्य कार्रवाई करता है, तब क्या सऊदी अरब भी युद्ध में पाकिस्तान के साथ खड़ा होगा?
रियाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी नेतृत्व ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान इस समझौते को अपनी बड़ी कूटनीतिक जीत बता रहा है और मुस्लिम दुनिया के भाईचारे से जोड़कर पेश कर रहा है। पाकिस्तान के पीएमओ का कहना है कि यह डील करीब आठ दशकों से चले आ रहे रिश्तों को नई मजबूती देती है और किसी भी आक्रमण के खिलाफ संयुक्त प्रतिरोध की नींव रखती है।
भारत ने इस समझौते को लेकर संयमित प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “सरकार इस घटनाक्रम के प्रभावों का अध्ययन करेगी। भारत अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने “आतंकवाद समर्थकों की धुरी” करार देकर कहा कि सऊदी जिसे ट्रंप ने कभी “आतंकवाद का सबसे बड़ा वित्तपोषक” कहा था और पाकिस्तान को आतंकवाद का कुख्यात प्रायोजक है, अब साथ आ गए हैं।
हालांकि सऊदी अधिकारियों ने इस समझौते को भारत-विरोधी कदम मानने से मना किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह समझौता किसी खास देश या घटना की प्रतिक्रिया नहीं बल्कि लंबे समय से चली आ रही चर्चाओं का नतीजा है। उनका कहना है कि भारत के साथ सऊदी के संबंध पहले से कहीं अधिक मजबूत हैं और आगे भी इन्हें आगे बढ़ाया जाएगा। 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 52 अरब डॉलर पार कर चुका है। सऊदी विजन 2030 के तहत भारत में 100 अरब डॉलर निवेश की योजना बना रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब की मौजूदा प्राथमिकताएं ईरान, हूती विद्रोही और इजरायल से जुड़े खतरे हैं। भारत के साथ उसका कोई प्रत्यक्ष टकराव नहीं है। इसके बाद अगर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है, तब सऊदी अरब के सीधे युद्ध में कूदने की संभावना बेहद कम है। उसकी नीति फिलहाल “भारत के लिए व्यापार और विकास” तथा “पाकिस्तान के लिए धर्म और रणनीति” पर आधारित है। पाकिस्तान इस डील को भले ही अपनी बड़ी उपलब्धि बताकर भारत को दबाव में लाने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन सऊदी अरब की प्राथमिकताएं और भारत के साथ उसके गहरे आर्थिक रिश्ते बताते हैं कि रियाद युद्ध में सीधे पाकिस्तान का साथ नहीं देगा।
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